भारत के दावेदार कई 'भरत'
पौराणिक युग में भरत नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं. दुष्यन्तसुत के अलावा दशरथपुत्र भरत भी प्रसिद्ध हैं जिन्होंने खड़ाऊँ राज किया.
नाट्यशास्त्र वाले भरतमुनि भी हुए हैं. एक राजर्षी भरत का भी उल्लेख है जिनके नाम पर जड़भरत मुहावरा ही प्रसिद्ध हो गया.
मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे. एक योगी भरत हुए हैं. पद्मपुराण में एक दुराचारी ब्राह्मण भरत का उल्लेख बताया जाता है.
ऐतरेय ब्राह्मण में भी दुष्यन्तपुत्र भरत ही भारत नामकरण के पीछे खड़े दिखते हैं. ग्रन्थ के अनुसार भरत एक चक्रवर्ती सम्राट यानी चारों दिशाओं की भूमि का अधिग्रहण कर विशाल साम्राज्य का निर्माण कर अश्वमेध यज्ञ किया जिसके चलते उनके राज्य को भारतवर्ष नाम मिला.
इसी तरह मत्स्यपुराण में उल्लेख है कि मनु को प्रजा को जन्म देने वाले वर और उसका भरण-पोषण करने के कारण भरत कहा गया. जिस खण्ड पर उसका शासन-वास था उसे भारतवर्ष कहा गया.
नामकरण के सूत्र जैन परम्परा तक में मिलते हैं. भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा. संस्कृत में वर्ष का एक अर्थ इलाक़ा, बँटवारा, हिस्सा आदि भी होता है.
दुष्यन्त-शकुन्तला पुत्र भरत
आमतौर पर भारत नाम के पीछे महाभारत के आदिपर्व में आई एक कथा है. महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला और पुरुवंशी राजा दुष्यन्त के बीच गान्धर्व विवाह होता है. इन दोनों के पुत्र का नाम भरत हुआ.
ऋषि कण्व ने आशीर्वाद दिया कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भूखण्ड का नाम भारत प्रसिद्ध होगा.
अधिकांश लोगों के दिमाग़ में भारत नाम की उत्पत्ति की यही प्रेमकथा लोकप्रिय है. आदिपर्व में आए इस प्रसंग पर कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् नामक महाकाव्य रचा. मूलतः यह प्रेमाख्यान है और माना जाता है कि इसी वजह से यह कथा लोकप्रिय हुई.
दो प्रेमियों के अमर प्रेम की कहानी इतनी महत्वपूर्ण हुई कि इस महादेश के नामकरण का निमित्त बने शकुन्तला-दुष्यन्तपुत्र यानी महाप्रतापी भरत के बारे में अन्य बातें जानने को नहीं मिलतीं.
इतिहास के अध्येताओं का आमतौर पर मानना है कि भरतजन इस देश में दुष्यन्तपुत्र भरत से भी पहले से थे. इसलिए यह तार्किक है कि भारत का नाम किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर न होकर जाति-समूह के नाम पर प्रचलित हुआ.
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