". कोरोना या करो ना

कोरोना या करो ना

साल २०२० कोराना के प्रकोप ने सारी दुनिया को हिला दिया 

वो इंसान जो स्वयं को कुछ आविष्कार करने के बाद मानो भगवान ही समझ बैठा था


चीन , इटली, अमेरिका और भारत सबसे अस्तित्व को कॉरोना ने हिला दिया।अच्छे से सुविधाओं से लैस देश भी इसकी चपेट  से नहीं बच सके।इस भेदभाव की दुनिया में कोरॉना ही ऐसा था जिसने सबको अपना माना और बिना लिंगभेद ,गरीब ,अमीर सबको बराबरी से अपने से जोड़ा।


फिर शुरुआत हुई अपने अपने राजनीतिक तिकड़मों कि किसी ने कहा ये चीनी वायरस है तो किसी को लगा प्राक़तिक आपदा

किसी ने कहा कुछ नहीं होता कारोना।

और मजेदार बात या विडम्बना यह थी कि इसकी कोई वैक्सीन नहीं ,और वो लोग जिनके पैरो के पहिए हर वक़्त घूमते रहते थे वो विराम में कैसे रहे

वाह रे Corona । इंतजार लम्बा होता जा रहा और साथ ही साथ carona का अफरा तफरी का माहौल और कुछ लोग तो Corona go के नारे लगा रहे थे ☺️जैसे कॉरॉना उनकी बुआ का बेटा है जो भाग जाए


खैर ये तो बात हुई की बीमारी अाई ,पर सोच ने वाली बात आखिर क्यों हम इस बीमारी से निजात नहीं पा पा रहे हैं।ये सिर्फ एक बीमारी नहीं ।ये प्राकृति का आवाहन था,की अभी नहीं सुधरे तो और भी विकराल रूप होगा,

मनुष्य कितना भी आगे बढ जाए कितनी भी चीजों को परिवर्तित कर ले ।पर प्राकृति की बनाई चीजों और नियमों से खेलने पर हमेशा विनाश हुआ है

इतिहास गवाह हैं की ईश्वर हर अति के बाद अपना होने का अहसास कराता है। चाहे कोई कितना भी अंधुनिक क्यों ना बन जाए सर झुकेगा तो जरूर ,और जो कहते थे कि भगवान जैसे कोई चीज नहीं उनने भी इस बीमारी निजात के लिए खुद को ईश्वर के प्रति जागरूक बना लिया।

संस्कृति के नाम पर जहां पहले हम किसी को देखकर नमस्ते जैसे सब्दो का प्रयोग करते थे वहीं अब लोग गले लगने लगे थे।

ईश्वर ने अपने तरीके से ये तरीके बदल दिए और नाम दिया 


(Social distancing)

क्या है सामाजिक दूरी अब क्यों किसी को गले नहीं लगते या फैशन के नाम पर किसी को मिलने पर क्यों नहीं उसके गालों को किस करते जैसे अभिनेता लोग करते थे।

खाने के लिए हमारे पास इतनी सब्जियां है को मानव अपने पूरे जीवनकाल में नहीं पूरी विभिंताओ को चख पाएगा ।

पर उसको तो वो खाना है जो जीव जंतु को खाद्य श्रंखला है

उससे भी पर नहीं भरा तो चमगादड़ का खून या मांस सही 

वाह रे इंसान।

वास्तव में ये बीमारी से अधिक एक संकेत है कि अब जरूरत है परिवर्तन की,अन्यथा प्राकृति अपने अनुसार बदल लेगी आपको


फिर लोग कहते है कि ईश्वर ऐसा क्यों कर रहे अभी तो हम दुनिया भी नहीं देखी,ईश्वर ने दुनिया में आपको दुनिया देखने ही बेजा है पर आप ने क्या किया उनके बनाए पेड़ पौधे नदी झरने सव जहर से भर दिए।और फिर रोते है।

जाते जाते एक वाक्य



अति का भला ना बोलना !

अति की भली ना चुप"

अति की भली ना छांव

अति की भली ना धूप "

























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