". Woman existence...our country

Woman existence...our country



एक लड़की को हमेशा यह  सिखाया जाता है कि उसे हर स्थिति में खुद को समायोजित करना आना चाहिए।
 हम अपनी बच्चियों को भी शुरुआत से ही यह सीख देना शुरू कर देते हैं कि आप एक लड़की हैं और आप में सहनशीलता होना बहुत आवश्यक है मुझे लगता है सहनशीलता का जो गुण है वह एक स्त्री में ईश्वर वरदान के रूप में जन्म के साथ में ही भेजता है क्योंकि बिना सहनशीलता के कोई भी स्त्री एक पुरुष के साथ पूरा जीवन निर्वाह नहीं कर सकती है 
एक शिशु को जन्म नहीं दे सकती है अगर स्त्री में सहनशीलता का गुण ना हो तो कितने घर बनने से पहले ही बिगड़ जाएंगे  एक औरत ही होती है जो अपने बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी सुंदरता का त्याग कर देती है और एक मां का कर्तव्य निभाने के लिए अपने सपनों को सपने में ही देख कर खुश हो लेती है यह सहनशीलता नहीं है तो क्या है जो वह अपना पूरा जीवन दूसरों के नियम और कानून के अनुसार चलाकर काट लेती है


और उससे भी आश्चर्य की बात तो यह होती है की वह कभी मुंह से यह नहीं कहती कि उसने किसी के ऊपर एहसान किया है क्योंकि उसने जो कुछ भी किया होता है उसमें उसके घर की सुख शांति भी सम्मिलित होती है और इन छोटी-छोटी खुशियों को महसूस करते हुए वह मंद मंद मुस्कुराते हुए अपने जीवन का हर पड़ाव पार करने लगती है पर दुखद और मानसिक तनाव उस समय उत्पन्न होता है जब उसी स्त्री को उसका पति यह कहता है कि तुमने किया ही क्या है 
घर के चार काम करके कोई एहसान कर दिया है क्या यह काम तो कोई भी कर लेगा 😒😒😒😒😒😒
घर के बाहर कभी निकलो तो पता भी चले कि काम क्या होता है और इस समय दुनिया कि कोई भी औरत खुद को थका और हारा महसूस करने लगती हैं दुनिया की कोई भी औरत घर के सारे काम करने के बाद भी खुद को इतना थका महसूस नहीं करती जितना इस मानसिक तनाव के बाद करने लगती है
ऐसे में लगता है क्या है औरत का अस्तित्व बचपन से लेकर बड़े होने तक के अलग नियम और जब कुछ करना चाहे तो यह कहकर ठाल दिया जाता है कि अपने घर जाना तो करना और शादी के बाद कुछ करना चाहे तो यह तुम्हारा घर नहीं है जो अपने मन की करोगी ,एक स्त्री का सब कुछ बदल जाता है उसके घर से लेकर उसके कपड़े और कपड़ों से लेकर उसका सरनेम यह सब कुछ बदलने के बाद भी उसे ही सहनशीलता का पाठ पढ़ाया जाता है मुझे सोच कर बड़ा आश्चर्य होता है कि ऐसे में जो पुरुष यह बोलते हैं कि तुम दुनिया की पहली औरत नहीं हो जो अपना घर छोड़कर दूसरे के घर में आई हो और इतने सारे व्यंगो के बाद भी वह पुरुष उस स्त्री से अपेक्षा करता है कि कुछ दिनों के भीतर ही वह उसके घर की सारी जिम्मेदारियों को अपना और वहां रहने वाले सारे सदस्यों के कार्यों को भी अपनी ही जिम्मेदारी माने।

वाह  पुरुष......

मैं उन पुरुषों से यह भी पूछना चाहती हूं क्या उन्होंने भी अपनी पत्नी के घर को पूर्णता अपने घर के रूप में स्वीकार कर लिया होता है क्या उन्हें भी वही तकलीफ महसूस होती है जो तकलीफ वह अपनी पत्नी को महसूस करवाने के लिए जागरूक रहते हैं 

चलिए खैर बिना विवाद की स्थिति को उत्पन्न करे हुए यह
बड़े ही दुख कि बात है कि कभी कभी यह लगता है कि लड़की का  उसका कोई घर है भी या नहीं .......

खैर अभी स्थिति कुछ हद तक बदल चुकी है अब जगह-जगह स्त्रियां भी अपना वर्चस्व स्थापित करते हुए दिखाई देती हैं और हर क्षेत्र में अपना बोल वाला भी दर्ज करा रही है



पर यह स्थिति हर क्षेत्र शहर कि नहीं है कहीं ना कहीं एक औरत को अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कड़ा संघर्ष तो करना ही पड़ता है और इस संघर्ष के बीच में उसे कई मानसिक तनाव हो और गिद्ध वाली नजरो का सामना करना पड़ता है 
तब जाकर वह अपने नाम को इस दुनिया में सार्थक बना पाती है तब जाकर कहीं उसे उसकी खुद की पहचान से जाना जाता है
मेरा उन सारे लोगों से यही कहना है कि घर दोनों से बनता है पर एक समझदार औरत ही आपके मकान को घर बनती है और उसे रहने लायक बनाती है जिस घर में आप दिन भर के थकान के बाद सुकून महसूस करते है वो आपकी पत्नी अपनी मां की मेहनत होती है ,जब घर जाने के बाद आपको गरम गरम खाना मिलता है उस खाने में आपकी घर की औरतों का प्यार होता है आप जब बाहर होते है और आपको यह चिंता नहीं होती की बच्चे क्या कर रहे होगे तो इस निश्चिंत रवैया के पीछे भी आपके घर की महिलाओं का ही योगदान होता है।
तो बात बस इतनी है की जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए दोनों की आवश्यकता है किसी एक का कंधा जिम्मेदारी नहीं उठा सकता ..........









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