". चरित्रहीन स्त्री ( A character less Woman)!

चरित्रहीन स्त्री ( A character less Woman)!





एक स्त्री की यदि किसी पुरुष से मित्रता होती है तो उसे असभ्य और असंस्कारी का खिताब दे दिया जाता है।और कहा जाता है कि वो तो जाने कितनो को मित्र बनाती है।


भले उसकी मित्रता कितनी ही साफ सुथरी क्यों ना हो,लेकिन कोई पुरुष यदि  एक से अधिक महिला मित्र रखे तो क्या बात है भाई तुम तो बहुत cool हो का खिताब दिया जाता हैं।और पुरुषों के लिए ये भी कहा जाता है कि पुरुष एक भवरे कि तरह होते है जो हर फूल पर बैठता है ,
पर वह पुरुष है तो उसका कुछ नहीं जाता है ,वो एक बार नहीं दस बार गलती कर सकता है,
पुरुष यदि अपनी पत्नी के साथ जोर जबरजस्ती कर उसे  अपना बनाना चाहे तो कुछ उच्च दिमाग से परिपूर्ण लोग कहते है कि निश्चित ही उसकी पत्नी का किसी पराए पुरुष से संबंध है इसी लिए वह अपने पति की बात नहीं मानती।
 यदि पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी महिला के साथ रहे तो  भी यही कहा जाता है कि निश्चित उसकी पत्नी में ही कुछ कमियां रही होगी।और वही स्त्री किसी और पुरुष से अपनी बातो को सांझा करे तो भी वह ही उत्पीड़ित होती है क्योंकि हर हाल में स्त्री ही चरित्रहीन होती है,


स्त्री मर्जी से आपके समक्ष स्वयं को सौंप दें तो भी वह ही अमर्यादित होती है और यदि कोई पुरुष जबरदस्ती कर  उसकी मान मर्यादा को भंग करता है तो भी वही समाज में नजरें मिलाने के काबिल नहीं होती है और वह पुरुष डंके की चोट पर उस समाज में खुले सांड की तरह घूमता है और अपना रुतबा सब को दिखाता है
 पर वह स्त्री जो किसी के उत्पीड़न की शिकार हुई होती है वह कोई गलती ना होते हुए भी
अपने आप को या तो एक कमरे में बंद कर लेती है या तो खुद ही अपने हाथों से अपने जीवन को समाप्त कर लेती है चरित्र हर हाल में स्त्री का ही जाता है 

ऐसे में कभी-कभी मन में यह बात आती है कि क्या पुरुषों का कोई चरित्र नहीं होता है निश्चित रूप से नहीं होता होगा तभी तो हर बात पर स्त्री ही चरित्रहीन कहलाती है


एक 5 साल की बच्ची का रेप हो जाता है ऐसे मैं भी क्या आप यही कहेंगे कि वह बच्ची ही चरित्रहीन रही होगी??????

हमारे समाज में एक समाज वह भी होता है जहां महिलाएं और लड़कियां अपनी और अपने घर की कुछ जरूरतें पूरी करने के लिए चंद रुपयों में बिच जाती है मुझे लगता है वह स्त्री और महिलाएं इस देश की सबसे उच्च चरित्रवान महिलाएं होती हैं वह इसलिए क्योंकि वह किसी राक्षस की इच्छाओं को तृप्त करके समाज में फैल रहे अनैतिक कार्यों की गिनती में कुछ हद तक कमी लाती हैं अगर यह महिलाएं ना हो जो अपनी जरूरतों के लिए कुछ चंद रुपयों के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देती हैं तो देश में ऐसे राक्षसों की तादाद बढ़ती ही जाएगी और सुरक्षित नहीं रह पाएगी  देश की किसी भी कोने की स्त्री बहू बेटियां ।
देखा जाए तो सुरक्षित वह आज भी नहीं है क्योंकि इस राक्षस मानसिकता वाले हैवान जब तक हमारे आसपास फैले रहेंगे तब तक यह डर मन में हमेशा बना रहेगा शायद यही वजह है कि कोई भी भगवान से बेटी नहीं मांगता ।

बेटी होना बोझ नहीं बोझ तो उसकी सुरक्षा बन जाती है 

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 स्त्री का तो चरित्र तबभी मूल्य अंकित हुआ  था  जब  द्रोपदी को उनके पति ने जुए में हारने के बाद दांव पर लगा दिया था  और बाद में कुछ महान पुरुष कहते हैं कि स्त्री ही सदैव एक बड़े विवाद की जड़ होती है चाहे आप महाभारत देखिए चाहे रामायण देखिए।............

आगे पढ़े अगले ब्लॉग में...................










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