". हमारे पूर्वज और श्राद्ध our country and rituals

हमारे पूर्वज और श्राद्ध our country and rituals

 





आप सबको पता होगा कि आजकल पितर पक्ष चल रहे है और हमारे हिन्दू समाज में इसका विशेष महत्व है।

पितर पक्ष में ऐसी मान्यता होती है कि जिन लोगो के घरों के बड़े बुजुर्ग ईश्वर में लीन हो चुके होते है उनके लिए विशेष पूजा और कुछ विशेष नियमों का पालन करते हुए पूरे नवमी तक सम्मान के साथ उन्हें उनकी पसंद के भोजन और भोग के साथ विदा करते है

जी हां ......कई लोग पितर पक्ष में बड़े ही नियमों और श्रृद्धा के साथ अपने मान्य  को या ब्राह्मण भोज भी कराते है तो कुछ लोग अपनी सामर्थ के अनुसार भोज आदि संपन्न करते है


हिंदुओ में ऐसी मान्यता होती है कि इन दिनों कोई भी नया कपड़ा ना वस्तु खरीदे ना ही पहने और लोग जहां तक संभव होता है उसको मानते भी है,कहते है कि पितर पक्ष में पुरखो को भोजन करने और उनका ध्यान करने से वो प्रसन्न होते है और आपको आशीर्वाद देते है जी बिल्कुल सत्य है पुराना पेड़ कुछ दे ना दे पर छाव अवश्य देगा ये तो आपने भी सुना ही होगा

उसी पुराने पेड़ की तरह होते है हमारे बुजुर्ग जिन्हें कुछ लोग बोझ भी समझते है और उसी बोझ के चलते वो उन्हें वृद्धा आश्रम भी छोड़ आते है और आखिर में जब वो ये संसार छोड़ कर अनन्त में विलीन हो जाते है तो वो उनका भी श्राद्ध आदि कर देते है और उस एक दिन वो लोग अपने पिता या मां जिनका

भोज वो कराने जा रहे होते है सारी वस्तुएं उनकी पसंद कि बनवाते है ये कहकर कि मेरी मां या पिता को बहुत पसंद था

मै उनकी इस सोच का भी सम्मान करती हूं,परन्तु यही भोजन अगर उनके जीते जी उनको मिला होता तो शायद बात कुछ और ही होती।

यही पसंद कि वस्तुएं और प्यार और सम्मान जो आप उन्हें मरन उपरांत दे  रहे होते है वहीं उनके होते हुए दिया होता तो उनकी आत्मा सुख का अनुभव जरूर करती ,पर कहते है ना हमारे बड़े बुजुर्गो का दिल इतना बड़ा होता है कि वो खुशी खुशी सारी गलतियां माफ कर देते है और उस एक परम्परा में ही खुश होकर अपने बच्चो को असीम आशीर्वाद देते है

मेरा उन सभी होनहार और व्यस्त दिनचर्या में रहने वाले लोगों से कहना है कि हमारे बड़े बुजुर्ग उस छप्पन प्रकार के भोग के नहीं भूखे होते है जो आप उन्हें ना रहने पर देते है उन्हें तो बस उनके जीते जी उनके हिस्से की खुशी प्यार और अपनापन चाइए होता है,जब आप उन्हें प्यार देते है घर का हिस्सा मान कर तो वो नमक रोटी में भी सुख कि सांस लेते है ।

और यही होता है सही मायनों में असली पितर कि जो हमारे  बीच है उनकी सेवा कर ले ना की उनके जाने के बाद साल में एक बार उनके हिस्से का भोग निकाल कर,क्योंकि आज नहीं कल हम भी किसी के लिए पितर ही बन जायेगे और जैसे बोएगे वैसा काटे गे  ये आप सब जानते है तो आज से यह सोचकर कोई भी व्यवहार करे अपनों से बड़ों के साथ को आपके लिए भी कहीं ना कहीं गलत होगा जब हम अपने बच्चो को हमेशा अपनी आंखो के सामने देखना चाहते है और उनसे अपने आने वाले जीवन के लिए प्यार और सम्मान की उम्मीद करते है तो उस वक्त अपने स्वयं के व्यवहार का भी मूल्यांकन करियेगा क्योंकि हम वही पाएंगे जो हम आज दे रहे होते है अपने बड़ों को।

खुश रहिए मतभेद होना उचित है पर मनभेद होनानहीं❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️










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