". बेटी बचाओ पर किससे?save daughter's but from whom?

बेटी बचाओ पर किससे?save daughter's but from whom?

 



बहुत दिनों से मेरे मन में एक ही ख्याल रह रह कर दस्तक देता है कि सरकार द्वारा बनाई गई रणनीति बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के पीछे क्या संदर्भ है

और बेटी बचाओ तो ठीक पर किससे ?

या बेटी बचाओ और बेटे को सही रास्ता दिखाओ

साथ में एक ये लाइन भी होनी चाहिए थी।


बेटी हो या बेटा एक संतान के रूप में दोनों ही मां और पिता को बराबर प्यारे होते हैदोनों की तकलीफ माता और पिता को झकझोर देती है

अब बात यहां आती है की आज कोई भी स्त्री और पुरुष जब माता और पिता बनने की तैयारी करते हैं तो उनके मन में बेटी को लेकर ही कई तरह के संशय क्यों आते रहते हैं
क्या वजह होती है की बेटी होने पर खुशी तो होती है किंतु मन में कहीं ना कहीं एक चिंता वाला कोना घर कर लेता है



वजह कोई अलग से आई हुई अद्भुत वस्तु नहीं है यह चिंता का विषय हमारे समाज में हो रही आए दिन आक्रामक गतिविधियों को लेकर है वही आक्रामक गतिविधियां जिनकी वजह से हमारे घरों की बच्चियां महफूज नहीं रह गई हैं वही गतिविधियां जिनकी वजह से हम अपनी बेटियों को ठीक रख प्रकार के कपड़े और अंधेरा होने के पहले घर आने को बोलते हैं जैसे कि आप सब को पता होगा कि आज से कई साल पहले लगभग जब कई घरों में शौचालय नहीं बने होते थे तो ऐसे में उस समय की बहू बेटियां या तो सुबह जल्दी सूरज की रोशनी निकलने के पहले या रात में सूरज डूबने के बाद खेतों में एक छोटी सी लालटेन के सहारे जाती थी और उस समय उनके मन में शिवाय भूत प्रेत के अलावा कोई और डर नहीं होता था इसके बावजूद भी वह सकुशल अपने घरों को वापस आ जाती थी पर अब लड़कियां दिन की रोशनी में भी अपने घरों के बाहर निकलती हैं तो उनके सुरक्षित कराने हर कहीं ना कहीं मन में संदेह उत्पन्न होता है शायद उस मन के भूत से कईयों ज्यादा खतरनाक और भयावह होते हैं आजकल के हवस के राक्षस जो अपनी गंदी दिमाग की उपज और वासनाओं को तृप्त करने के लिए
 छोटी सी छोटी बच्ची को अपना शिकार बनाने से नहीं चूकते हैं
शायद यही वजह है की जिस भी मध्यम वर्गीय व्यक्ति को यह पता चलता है की आने वाली संतान उनकी एक बच्ची है तो वह उसको इस दुनिया में आने के पहले ही खत्म करने की ठान लेते हैं 


मैं ऐसे में उन माता-पिता को दोषी नहीं मानती हूं क्योंकि जब किसी की बच्ची कुछ दरिंदों का शिकार बनती है तो वह माता-पिता जिन मानसिक क्रंदन से गुजरते हैं उस तकलीफ को शायद ही कोई और समझ पाएगा और फिर शुरू हो जाता है वही रटा रटा या कैंडल मार्च धरना प्रदर्शन और जस्टिस की मांग हर होता क्या है काफी सालो के इंतजार के बाद उन्हें इंसाफ मिलता भी है जोकि मानसिक संतुष्टि का कारक नहीं बन पाता है और अगर किसी बच्ची को जल्द से जल्द इंसाफ मिल भी गया तो ऐसे इंसाफ का सर्टिफिकेट बना कर वह मां-बाप अपने घर की दीवार पर तो नहीं ठागेंगे ना क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का एक अनमोल हीरा खो दिया होता है वह अपने जीवन पर यंत्र उन कल्पनाओं से निजात नहीं पा ,,,,,पा आते हैं जो कष्ट उनकी बेटी ने मानसिक और शारीरिक रूप से  झे़ले होते हैं
वह जीवन भर उन चितकारों को नहीं भूल पाते हैं जो उन्होंने अपनी उसी बच्ची के मुख से सुने होते हैं जिसके चेहरे पर उन्होंने हमेशा एक अच्छी मुस्कुराहट की कामना करें होती है


रे प ही नहीं है सिर्फ एक बच्ची को इस दुनिया में नहीं लाने का कारण उसके अलावा भी बहुत सारी बातें ऐसी हैं जिसके चलते कोई भी माता-पिता अपने भविष्य के लिए एक बेटे की तुलना में अधिक चिंतित हो जाते हैं और नहीं माता-पता यदि कि सी मध्यम वर्ग से होते है तो ऐसे में उनकी चिंता शुरू हो जाती है एक अच्छे परिवार और उनके लिए दहेज कि जिसके चलते ना जाने कितने घर जल कर राख हो गए होगे।


मेरा मानना है ये की अगर हर मां बेटी को सिर्फ ये ना बताते कीउन्हे कैसे कपड़े पहने ने है बल्कि बेटे को भी सिखाए कि कपड़े कैसे भी हो पर शरीर वही होगा जो उसको मां का है वहीं बनवट वही काया जिसको देखकर वो बड़ा हुआ है ।
तो शायद कहीं हद तक ये अनुचित हादसे रुक जाए।










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