". Little things ..a mind full of satisfaction

Little things ..a mind full of satisfaction

छोटी बातें आजकल हर व्यक्ति भागदौड़ मैं व्यस्त है हर व्यक्ति अपने जीवन को आगे बढ़ाने की मुहिम में इतना व्यस्त हो चुका है की उसे छोटी छोटी बातों और उनके अंदर उपस्थित अर्थ को समझने का वक्त ही नहीं रहे गया है है सबको बड़ी चीजें बड़ी शानदार जिंदगी बड़ी गाड़ी बड़ा घर यही चाहिए किसी को छोटी चीजों मैं कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है पर क्यों हम इतना व्यस्त कैसे हो गए कि हमें छोटी बातों को समझने का समय ही नहीं रह गया है कभी-कभी हम बड़ी चीजों के इंतजार में उन छोटी चीजों मैं मिल रहे आनंद और खुशियों को खो देते हैं जो फिर हमें कभी नहीं मिलती।

एक बार एक गांव में अकाल की स्थिति आ गई जब काफी समय तक बारिश नहीं हुई बारिश ना होने की वजह से फसल भी अच्छी नहीं हुई जिससे हर किसान बिना भोजन अ न्न के परेशान हो गया पर ऐसे ही स्थिति के लिए उसी गांव के कुछ साहूकारों ने अपने घरों को अनाज से भर रखा था कि जब अकाल की स्थिति आएगी तो उस अन्य को महंगे दामों पर बेचेंगे और अधिक मुनाफा कमाएंगे पर गरीब किसान मरता ना क्या करता कैसे भी करके अपनी और अपने परिवार की भूख को शांत करने के लिए वह गांव में अन्य बेच रहे साहूकारों के जाल में फंस गए ऐसे में ,एक दयावान साहूकार भी था जिसन सोचा कि क्यों ना ऐसी स्थिति में इन गरीब किसानों की मदद करी जाए तो उसने अपने घर के बाहर एक बड़े से बोर्ड पर लिखवाया कि यहां पर सुबह और शाम दोनों वक्त भंडारा होयेगा और प्रत्येक किसान यहां आकर अपने दोनों वक्त का खाना खा सकता है


 यह बोर्ड पढ़ते ही गांव के बच्चों में खुशी की लहर दौड़ गई और गांव के सारे बच्चे वहां साहूकार के यहां भीड़ लगाकर जमा हो गए साहूकार ने एक बड़े से स्टॉल पर भिन्न प्रकार के व्यंजन और एक बड़ी सी टोकरी में रोटियां रखवा रखी थी सारे बच्चे आते और आते ही खाने के लिए टूट पड़ते ऐसे में एक छोटी सी बच्ची थी जो प्रतिदिन आती थी पर कभी भी खाने के लिए झगड़ा नहीं करती थी और ना ही भीड़ में जाकर अपने लिए खाना लेती थी जहां सारे बच्चे टोकरी में रखे सारी बड़ी रोटियां उठाकर जल्दी-जल्दी अपनी तालियों में रख लेते थे वही मै छोटी बच्ची अपनी बारी की प्रतीक्षा करती थी और देखती थी जब टोकरी में कोई बड़ी रोटी नहीं बची तो अंत में पड़ी एक छोटी सी रोटी को ले लेती थी इस प्रकार यह रोज-रोज होने लगा साहूकार इस बात को बहुत ध्यान से देखता था बहुत छोटी बच्ची को रोज देखता और ध्यान देता कि यह कभी भी भीड़ में आकर अपने लिए खाना नहीं पर उसकी और ना ही कभी बड़ी रोटी के लिए लड़ती थी 1 दिन साहूकार ने छोटी रोटियों के अंदर सोने के सिक्के रखवा दिए अगले दिन जब सारे बच्चे टोकरी में पड़ी छोटी रोटी को ना लेने की वजह बड़ी रोटी का इंतजार कर रहे थे तभी वह छोटी बच्ची बड़े संतोष पूर्वक आई और उस छोटी रोटी को उठाकर अपने घर चली गई परंतु जब उसने घर जाकर देखा कि उस रोटी में सोने के सिक्के हैं

 तो उसने अगले दिन अपने माता-पिता के साथ आकर साहूकार से कहा कि शायद गलती से आटा माड्डते वक्त कुछ सोने के सिक्के आटे में गिर गए होंगे जिससे कि यह रोटी में आ गए यह रहे आप के सिक्के साहूकार को यह देख कर बहुत खुशी हुई कि एक छोटी बच्ची संतोषी होने के साथ-साथ ईमानदार भी है 


अवश्य ही यह  यह गुण इसको इसके माता-पिता से मिला होगा साहूकार को बहुत ही खुशी हुई और उसने उसके पिता को अपने यहां एक अच्छी सी नौकरी पर रख लिया


 साहूकार ने उस बच्ची से पूछा कि बेटा जब सारे बच्चे आपस में बड़ी रोटी के लिए झगड़ते थे तो तुम छोटी रोटी लेकर ही क्यों संतुष्ट हो जाती थी क्या तुमको कभी नहीं लगता था कि बड़ी रोटी लेकर जाएंगे तो पूरा घर खाना खा लेगा और पूरे घर का पेट भर जाएगा इस पर उस बच्ची ने बड़ा ही सुंदर उत्तर दिया कि मेरे माता पिता ने सदैव या सिखाया है की छोटी-छोटी बातों में खुश रहना चाहिए संतुष्ट रहना चाहिए कभी-कभी हमें बड़ी बातें वह खुशी नहीं दे सकती हैं जो छोटी-छोटी चीजें दे जाती हैं जो मैंने अपने माता-पिता से सीखा वही मैंने वहां करा बच्ची की



 यह बात सुनकर साहूकार आनंदित हो उठे।

और उन्हें यह एहसास हो गया कि वास्तव में जीवन में वह छोटी छोटी बातें जो हम अनदेखी कर देते हैं वह कभी-कभी हमारा जीवन बदल देती हैं 


अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के द्वारा दी गई उन सारी छोटी छोटी चीजों में संतुष्ट और खुश रहना चाहिए और हमें उनका धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने हमें वह सारी चीजें दी जिससे कि हम जीवित हैं और आगे बढ़ते रहते हैं इस कहानी से सिर्फ हमें यही शिक्षा मिलती है कि जो लोग यह सोचते हैं की जिंदगी में सिर्फ अधिक पैसा और बड़ा घर बड़ी गाड़ी ही प्रसन्न रहने की कुंजी है उनकी यह सोच पूरी तरीके से गलत है


 क्योंकि कभी-कभी गरीब किसान भी एक वक्त की रोटी खाकर अपने परिवार के साथ प्रसन्न होता है वही बड़े महलों में रहने वाले अच्छा भोजन करने वाले भी मानसिक रूप से प्रश् नहीं होते हैं और जब तक व्यक्ति मानसिक रूप से प्रसन्न नहीं होगा उसका सारा धन सुख सुविधाएं सब व्यर्थ है सारी संपत्ति होने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से सुख का अनुभव नहीं कर रहा है 


मतलब वह कहीं ना कहीं खुद को अकेला और अधूरा अनुभव कर रहा है इसलिए भगवान की दी हुई इस सुंदर सी जिंदगी को सुंदर ही बना रहने दे हमेशा बड़े की छांव में उन छोटी चीजों को ना खाएं जिनसे हमें मानसिक खुशी मिलती है

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