". Story behind Rakshabandhan

Story behind Rakshabandhan




राखी का त्योहार
 जिसे रक्षाबंधन के नाम से भी जाना जाता है दरअसल यह श्रावणी उत्सव है जिसका जिक्र हमारे धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। इस दिन कलाई में रक्षासूत्र बांधन की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। गुरु शिष्य परंपरा में शिष्य इस दिन अपने गुरुओं को रक्षासूत्र बांधा करते थे। 

पुरोहितों द्वारा रक्षासूत्र बांधने की परंपरा

वैदिक काल से लेकर आज तक समाज में पुरोहितों द्वारा यजमानों को रक्षासूत्र बांधे जाने की परंपरा है। प्राचीन काल में पुरोहित राजा और समाज के वरिष्ठजनों को श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधा करते थे। इसके पीछे यह उद्देश्य माना जाता था कि राजा और वरिष्ठजन समाज, धर्म, यज्ञ एवं पुरोहितों की रक्षा करेंगे। इस परंपरा की शुरुआत देवासुर संग्राम से हुई थी ऐसा माना जाता

पति-पत्नी ने शुरू किया रक्षाबंधन का त्योहार

भविष्‍यपुराण में उल्‍लेख मिलता है कि सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक असुर हुआ। उसने अपने साहस और पराक्रम के बलबूते देवताओं को पराजित कर स्‍वर्ग पर अधिकार कर लिया। वृत्रासुर को यह वरदान था कि वह किसी भी अस्‍त्र-शस्‍त्र से पराजित नहीं होगा। इसके चलते देवराज इंद्र उससे बार-बार हार जाते थे। तभी महर्षि दधीचि ने अपने शरीर का परित्‍याग किया और उनकी हड्डियों से इंद्र का अस्‍त्र वज्र बनाया गया। इसके बाद इंद्र अपने गुरु बृहस्‍पति के पास पहुंचे और बताया कि वह वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे हैं। यदि विजयी हुए तो ठीक अन्‍यथा वीरगति को प्राप्‍त होकर ही लौटेंगे। इन सारी बातों को सुनकर देवराज की पत्‍नी देवी शची ने अपने तपोबल से अभिमंत्रित करके एक रक्षासूत्र बनाया और उसे देवराज इंद्र की कलाई पर बांध दिया। जिस दिन शची ने इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था वह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। देवराज विजयी हुए और उन्‍होंने यह वरदान दिया कि इस दिन जो भी व्‍यक्ति रक्षासूत्र बांधेगा, वह दीघार्यु और विजयी होगा। इसके बाद से रक्षासूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई जो देवी लक्ष्मी और राजा बलि के रक्षाबंधन से भाई बहन का त्योहार बन गया।


द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण का रक्षाबंधन

महाभारत काल में द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण को लेकर भी एक कथा मिलती है। इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल का वध करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र चलाया। चक्र से भगवान की उंगली थोड़ी कट गई और खून आ गया। द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान की उंगली पर लपेट दिया। कहते हैं जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह समय आने पर साड़ी के एक-एक धागे का मोल चुकाएंगे। चीर हरण के समय भगवान ने इसी वचन को निभाया।


जब युधिष्ठिर ने बांधी राखी

महाभारत में रक्षाबंधन को लेकर युधिष्ठिर और श्रीकृष्‍ण का भी प्रसंग मिलता है। कहते हैं कि जब धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से युद्ध के लिए जा रहे थे तो उन्‍होंने श्रीकृष्‍ण से युद्ध में विजयी होने के लिए प्रश्‍न किया कि आखिर वह इस युद्ध में विजय कैसे प्राप्‍त करें। तब श्री कृष्‍ण ने उन्‍हें सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने की बात कही। उन्‍होंने कहा कि इस रक्षासूत्र से व्‍यक्ति हर परेशानी से मुक्ति पा सकता है। इसके बाद धर्मराज ने श्रीकृष्‍ण के बताए मुताबिक ही रक्षासूत्र बांधा और उन्‍हें सफलता भी मिली। कथा मिलती है कि जिस दिन युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को रक्षासूत्र बांधा वह भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था।


ऐसे बना रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार

राजा बलि बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने रक्षासूत्र का धर्म निभाते हुए मां लक्ष्‍मी को भगवान विष्णु सौंप दिया। देवी लक्ष्मी ने मुंहबोले भाई बलि को राखी बांधकर विष्णु भगवान को मुक्त कराया था। इसी दिन से राखी भाई बहन का त्योहार बन गया।

इस प्रकार विभिन्न तरह की कहानियों के बाद बना रक्षाबंधन का पावन त्योहार ।













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