". Don't judge soon .......

Don't judge soon .......

 


कभी कभी हम और आप जल्दबाजी में ही किसी भी व्यक्ति और वस्तु के बारे में राय बना लेते है ये जाने बिना की हो सकता है इसका कोई अन्य पहलू भी हो 

क्योंकि ये तो आप भी जानते है कि कभी कभी आंखो देखा और कानो सुना भी गलत हो सकता है या हो सकता है कि हमने जो सुना और देखा उसका वह अर्थ ही नहीं हो जो हमने मन में मान लिया हो।

ऐसे में हम अपने दिमाग को संकेत पहुंचा देते है और मान लेते है कि फला व्यक्ति और जगह गलत है हर बात के दो अर्थ तो होते ही होते है और ऐसे में आपने किस वाले अर्थ को चुना यही आपको असली मानसिकता बताती है और यदा कदा तो हम यह मानसिकता इस कदर अपने जहन में बिठा लेते है की ताउम्र ये सोच नहीं बदलती।चलिए एक कहानी सुनाती हूं

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एक बार पिताजी अपनी बेटी को बाजार घुमाने के लिए ले गए, बाजार में तरह-तरह की चीजें थीं, तभी बेटी की नजर सेब से भरे एक ठेले पर पड़ी । बेटी ने पिताजी से सेब दिलाने के लिए कहा क्योंकि बेटी बहुत छोटी थी और पिताजी नहीं चाहते थे कि उसकी बेटी इसके लिए जिद करने लगे इसलिए पिताजी ने तुरंत दो सेब खरीद लिए । तुरंत ही बेटी ने दोनों सेब अपने एक-एक हाथों में ले लिया ।

उसके पिता ने उससे पूछा कि- बेटी क्या तुम मेरे साथ एक सेब बाँट सकती हो?

यह सुनते ही बेटी ने एक सेब का टुकड़ा खा लिया ।  इससे पहले कि पिता कुछ और बोलता बेटी ने दूसरे सेब का टुकड़ा भी खा लिया ।

यह देखकर उसके पिता को बहुत दुःख हुआ, वह मन ही मन सोचने लगा कि उसने अपनी बेटी को कैसे संस्कार दिए हैं ! शायद कुछ गलत संस्कार की वजह से उसकी बेटी के अंदर लालच की भावना पैदा हो गयी है..

पिता मन में इस प्रकार की बातें सोच ही रहा था कि बेटी ने उसकी तरफ एक सेब बढाते हुए कहा- कि पापा आप यह सेब खाइए, ये बहुत ही मीठा और रसीला है ।

इस  पर पिता को कुछ कहते नहीं बना, उसे बहुत ही बुरा महसूस हो रहा था कि उसने बिना कुछ सोचे समझे  अपनी बेटी के बारे में गलत राय कैसे बना ली !

हांलाकि वह अपनी बेटी का यह प्यार देखकर बहुत खुश भी था लेकिन उसे पछतावा भी हो रहा था… 


बिना किसी चीज को सोचे समझे जल्दबाजी में कभी भी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए ।

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